डर के खिलाफ एक पहल - आशीष जॉर्ज
मुझे डर लगता है, वो दर्द भरी चिल्लाहट से
जो आज भी मेरे देश की महिलाओ की असुरक्षिति के कारण उठती है
मुझे डर लगता है, उन निर्दय हाथो से
जो आज भी गरीब लाचारों पर जुल्म करते है
मुझे डर लगता है, उन मजदुर पीड़ितों की पुकार से
जिन्हे आज भी कहीं न कहीं मज़बूरी में अपने मालिकों के तलवे चाटने पड़ते है
मुझे डर लगता है, उन छोटे छोटे बच्चो के रोनो से
जो नाले कचरो में पड़े हुए भी अपनी माँ की ममता का इंतज़ार करते है
मुझे डर लगता है, उन विचारो से
जो आज भी लोगो को लड़का - लड़की का भेदभाव करने को मजबूर करती हो
मुझे डर लगता है, उन विचारधाराओ से
जो आज भी धर्मो के नाम पर एक भारत को अनेक हिस्सों में बाँट देते है
मुझे डर लगता है, उन बच्चो के मासूमियत भरे चेहरे से
जिनका आज भी फायदा उठा क्से बाल मजदूरी करवाई जाती है
मुझे डर लगता है, उन बूढ़े माँ - बाप की करूँ व्यथाओं से
जिनके बच्चे आज भी उनके सच्चे निस्वार्थ प्यार को भूल उन्हें वृद्ध आश्रम छोड़ जाते है
मुझे डर लगता है, उन आवाज़ों से
जो आज भी राजनीति के बहाने भरस्टाचार फैलाते है
मुझे डर लगता है, उन इंसानो की मुस्कराहट से
जो आज भी इतना कुछ होने के बाद भी सब चुपचाप सहन करते है